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कुछ समय पहले वादा तो अच्छे दिनों का किया गया था लेकिन लगता है देश के बुरे दिन लाख कोशिशों के बाद भी जाने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. या फिर बुरे दिन खुद को भारत में ही ज्यादा महफूज समझकर खूब मन लगाकर अपना काम कर रहे हैं. पिछली रात कुछ ऐसा किस्सा ही देखने को मिला जब टीम इंडिया ने करोड़ों भारतीय दर्शकों के अरमानों पर उस्तरा फेर दिया. दर्शक तो बड़ी बेसब्री से फेस्टिव सीजन के एडवांस गिफ्ट का इंतजार कर रहे थे. उनकी आंखें मैदान से हट नहीं रही थी वो चौके-छक्कों की उम्मीद करते हुए तालियों वाला पोज बनाकर ही बैठे थे कि अचानक शिखर धवन वक्त की दौड़ में पीछे छूटते हुए रन आउट हो बैठे. इस पर दर्शकों को ताली वाले पोज को आनन-फानन में बदलते हुए सिर पकड़ना पड़ा. इसके बाद तो ‘तू चल भाई, मैं आता हूं’ की प्रतियोगिता शुरू हो गई. जिसे जीतने के लिए एक के बाद एक सभी भारतीय खिलाड़ी ड्रेसिंग रूम में दौड़ते हुए नजर आए. वहीं दर्शकों का रूमाल पूरी तरह भीग चुका था. कई उग्र मिजाज दर्शकों का गला टीम को कोसते-2 सूख चुका था. महज चंद घंटो में मैदान में सन्नाटा और स्कोर बोर्ड पर 92/10 का फुद्दू सा अंक दिखाई दे रहा था.
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इतने में पिछले दिनों अहिंसा दिवस बना चुके देशवासियों ने ऊबकर कुछ नया करने की सोची और हवा में पानी की खाली बोतलें उछालते हुए अपना विरोध जताना शुरू कर दिया इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता. मैदान में चारों ओर खाली बोतलों का साम्राज्य बन चुका था. ऐसा लग रहा था मानों देशवासी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की बैंड बजाने का पक्का इरादा बनाकर आए हो. जैसे वे ये साबित करने पर तुले हो कि स्वच्छ भारत अभियान आउट ऑफ फैशन हो गया है. जो पिछले साल फैशन में था. अब जब आला-कमानों को ही अभियान से कोई सरोकार नहीं रहा तो हम वक्त के साथ क्यों न बदलें. दर्शकों में कहीं न कहीं सरकार को पीछे छोड़ते हुए बदलाव में सबसे अव्वल आने की चाह रही होगी.
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दूसरी ओर शायद टीम इंडिया द्वारा कटक में नाक कटवाने का बदला दर्शकों ने कुछ इस तरह लिया. क्या पता उनके मन में यह भावना घर कर गई हो कि जब टीम इंडिया ने हमारी नाक कटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो हम क्यों किसी की परवाह करें. उनकी इस हरकत से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि धूमिल होगी या मजाक बने इससे उन्हें क्या मतलब. भई आखिर बचपन से जीतने की आदत ही तो सिखाई जाती है और वैसे भी हार को स्वीकार करके हम कमजोर होने का तमगा क्यों लें?
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वहीं दूसरी तरफ विदेशी खिलाड़ी और पूरी दुनिया भारतीय दर्शकों का यह विकराल रूप देखकर अचरज में पड़ गई होगी कि ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत भारत में पिछले साल की गई थी या हमारी जनरल नॉलेज में कोई भंयंकर चूक हुई है. इसी सदमे में विपक्षी टीम ने ऐसा प्रदर्शन किया कि मैच जीतने के बाद वो वापस इसी दुनिया में लौटकर, अपने आस-पास बिखरी हुई खाली बोतलों को एक व्यंगभरी तीखी मुस्कान के साथ ताक रहे थे. वहीं दूसरी तरफ स्वच्छ भारत अभियान भीड़ में कहीं गुम होकर अपने गुनाहगारों की तलाश में खाली बोतलों को लांघता बदहवास घूम रहा था. कि अचानक उसको एक मशहूर कवि की मार्मिक कविता की पंक्ति याद आई ‘भीड़ का कोई नाम नहीं, कोई वजूद नहीं होता’. इसके बावजूद वो मन में अच्छे दिनों की उम्मीद लिए और अपने तिरस्कार का कड़वा घूंट पीकर एक कोने में पड़ा रहा और आश्चर्य की बात ये है कि किसी ने उस पर ध्यान तक नहीं दिया..Next
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