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लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीच-बीच में उपचुनाव की ‘एनर्जी ड्रिंक’ मिलने के बावजूद आज भी कांग्रेस अपने पिछले सदमे से बाहर निकल ही नहीं पा रही है. आज भी मोदी की लहर उन्हें सता रही है, तड़पा रही है या कहें रुला रही है. जिस भी मंच पर मोदी जाते हैं उनकी तो वाहवाही होती है, बदले में कांग्रेस नेताओं की फजीहत भी देखने को मिलती है.
ठ करने वाले कभी बीजेपी के लाल रहे ‘लालकृष्ण’ आजकल नए लाल (मोदी) की बालहठ की वजह से मुंहफुलाए हुए हैं.
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भैइया मुंहफुलाए भी क्यों ना, जो ‘लाल’ (मोदी) कभी अपने उस्तादों (अटल-आडवाणी-मनोहर) की गोद में खेला करता था, राजनीति और हिंदुत्व का ककहरा सिखा करता था आज वही ‘अभिमानी लाल’ बीजेपी के तीन धरोहरों में से दो को ‘कभी इस ओर तो कभी उस ओर धकिया रहा है’. उन्हें राजनैतिक पदों का लॉलीपॉप तो दिखा रहा है, लेकिन कुछ देर दिखाने के बाद खुद ही मुंह में गप कर जाता है.
ऐसा लग रहा है जैसे कोई दुलारा बेटा भाजपा रूपी परिवार में मनमानी कर रहा है या कोई खेल खेल रहा है. समस्या यह है कि परिवार का लोकप्रिय और चर्चित ‘लाल’ होने की वजह से कोई उसके हठ को रोक भी तो नहीं सकता. कब क्या पता, यह हठधर्मी लाल उनके साथ भी लॉलीपॉप वाला खेल खेलने लगे.
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इस लाल की बदमाशियां और शैतानियां इस हद तक बढ़ चुकी है कि बड़े-बुजुर्गो का आदर-सतकार कैसे करना चाहिए वह भी भूल गया है. संघ और पार्टी में रहते हुए जो शिक्षा इन बुजुर्गो द्वारा दी गई थी उसे भी दरकिनार करते हुए सबसे उंची वाली कुर्सी पर बैठकर मनमानी कर रहा है.
उंची वाली कुर्सी पर बैठकर अभी आगे क्या गुल खिलाएगा बीजेपी का यह ‘नया लाल’ यह तो पता नहीं लेकिन उसकी बदमाशियां और शैतानियां आगे भी जारी रहेगी. अब शायद वह परिवार के उन सदस्यों को निशाना बनाए जो इससे बढ़कर बालहठ करने की कोशिश करते हो.
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