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मुलायम सिंह यादव– आपको शायद पता नहीं कि दारा सिंह को पहलवानी में आगे लाने में मुलायम सिंह यादव का बड़ा योगदान है. नेता नहीं होते तो पहलवानी में दारा सिंह को पटखनी दे रहे होते. चंदगी राम को एशियन गेम्स में मेडल के बदले यह भी मुलायम सिंह यादव को मिला होता. हमारे धुरंधर नेता मुलायम सिंह यादव नेता बनने से पहले पहलवानी किया करते थे और अपने इलाके के जाने-माने पहलवान थे. वह तो उन्हें दारा सिंह, चंदगी राम जैसे पहलवानों पर दया आ गई इसलिए दिलदार मुलायम जी ने अपने कोमल मन को पत्थर बनाकर अपनी पसंद से अलग कर लिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि जाओ भाइयों आपलोग कुश्ती-पहलवानी में नाम कमाओ, मैं प्रधानमंत्री बन गया तो भी खुश हो जाऊंगा. प्रधानमंत्री नहीं बने इसमें हमारी गलती नहीं, दारा सिंह या चंदगी राम की गलती हो तो खेद के साथ यह कहना पड़ रहा है कि यह पूछने के लिए वे अब हमारे बीच नहीं हैं.
मायावती – अगर नेता नहीं होतीं तो ये जन कल्याण करने वाली बौद्ध भिक्षु होतीं. दरअसल मायावती को कल्याण करने का आशीर्वाद है और बौद्ध भिक्षु बनना उन्हें पसंद है. भिक्षु मायावती का यह कल्याणकारी तरीका भी अनोखा होता. उन्हें आशीर्वाद के रूप में उनका जन्मदिन मिला है, आपका भी एक जन्मदिन होगा लेकिन मायावती और उनके अनुयायी (पार्टी सदस्य) मायावती का जन्मदिन जनकल्याणकारी दिवस मानते हैं इसलिए उस दिन ढेर सारे हीरे-जवाहरात से लदी मायावती बड़ी सी केक काटकर जनता के ढेर सारे पैसे खर्च कर उनका कल्याण करती हैं. तब भी भिक्षा मांगकर वे भिक्षाटन के पैसों से हर साल जन्मदिन मनाकर जनकल्याण करने वाली भिक्षुक होतीं.
मनमोहन सिंह – बेचारे नेता तो कभी भी नहीं थे, कांग्रेस वालों ने जबरदस्ती उन्हें नेता का नाम देकर सामने बिठा दिया लेकिन उनका ‘वित्त-प्रेम’ और 1991 की क्राइसिस मैनेजमेंट देखकर हमारा अंदाजा है कि अगर वे नेता नहीं होते तो किसी पब्लिक रिलेशन कंपनी में क्राइसिस मैनेजमेंट विशेषज्ञ होते. अगर कांग्रेस ने 2004 में क्राइसिस से निकलने के लिए मोदी को इस क्राइसिस का हिस्सा नहीं बनाया होता तो अभी भी कोई न कोई क्राइसिस मैनेजमेंट कांग्रेस के लिए ये कर ही देते.
राहुल गांधी – बहुत बड़ा सवाल है और जवाब बहुत मुश्किल! मुश्किल इसलिए क्योंकि राहुल बाबा तो अभी बच्चे हैं, बच्चों को बनना क्या है वे हमेशा कनफ्यूज होते हैं. इसलिए हमारा अंदाजा है कि अगर वे नेता नहीं होते तो साधु होते. साधु की महानता की बात नहीं है, बात बस इतनी है कि उन्हें क्या करना है, कब करना है, कैसे करना है, क्या बोलना है, कब बोलना है और कैसे बोलना यह हमेशा सोचते ही रहते. अभी कुछ सोचते, थोड़ी देर बाद कुछ और. इस तरह पहले वे ‘थिंकर’ बनते और सोच में डूबे रहने के कारण साधु कहलाने लगते. गाइड का देवानंद याद कीजिए!
सोनिया गांधी – सौ टके का सवाल कि देश की बहू (सोनिया गांधी) अगर देश की बहू (नेता) नहीं होती तो क्या होती. यह भी कोई पूछने वाली बात है भला, अपने परिवार की लक्ष्मी होतीं. घर कैसे सजाना है, बच्चों को आगे कैसे बढ़ाना है यह सोच रही होतीं. नेतागिरी से कुछ मिला भी नहीं. करोड़ों के घोटाले पड़ोसियों ने किए और बेचारी देश की बहू मात्र कुछ करोड़ जो मायके से लेकर आई थी, लेकर संतुष्ट है. नेता नहीं होतीं तो गृहलक्ष्मी बनकर बेटे को तो लक्ष्मी कमाने लायक बना रही होतीं!
शरद पवार – इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर नेता नहीं होते तो शरद पवार ‘देश की असली पहचान’ (किसान) होते. किसान परिवार के शरद पवार ग्लोबलाइजेशन के दौर में नेता बनकर भी भटके नहीं और अपनी हिंदुस्तानियत को बरकरार रखते हुए किसानियत से हमेशा जुड़े रहे. नेता नहीं होते तो वे हिंदुस्तान के नए किस्म के वैज्ञानिक होते. क्रिकेट खेलते हुए हल कैसे चलाना है, ऐसा कोई तरीका ईजाद करते.
दिग्विजय सिंह – इनके नेता बनने का सबसे ज्यादा खामियाजा सलमान खान को भुगतना पड़ा है. अगर नेता नहीं होते तो लोगों को जवान रहने के टिप्स बता रहे होते. शायद तब पुरुषों को जावेद हबीब की हेयर स्टाइल से ही संतुष्ट होकर रह जाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता. 70 की उम्र तक लड़कियां कैसे पटानी है इसके टिप्स लेकर सलमान खान 50 की उम्र तक कई शादियां कर चुके होते.
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