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समय का पहिया न रुका है न रुकेगा बस हर कोई उसके सम्मुख झुकेगा. आज भारतीय राजनीति में कांग्रेस का समय उस फीके रंग की तरह है जो धीरे-धीर उड़ता जा रहा है. वहीं भाजपा के पालनहार नरेंद्र मोदी उस चढ़ते सूरज के समान हैं जिसके प्रकाश से हर कोई प्रकाशित होना चाहता है.
अब जहां प्रकाश होगा, वहां जोश और लहर भी होगी जिसे अगर कोई रोकने की कोशिश करेगा वह भस्म हो जाएगा. सुना है आज मोदी की इसी सुनामी रूपी लहर को रोकने के लिए आम आदमी का मसीहा अरविंद केजरीवाल बिना किसी सेफ्टी प्रिकॉशन के छाती तान कर खड़ा है. कांग्रेस के युवराज की तरह अरविंद भी मानते हैं कि यह लहर मीडिया द्वारा निर्मित एक गुब्बारा है जो आम चुनाव के बाद फूट जाएगा.
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खैर लहर को कितना रोक पाएंगे केजरीवाल यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन जो लहर पिछले कुछ दिनों से उनके बदन और गालों पर हो रही है उसका क्या? ऐरा-गैरा कोई भी आकर उनकी गाल पर लहर पैदा कर देता है और वह बेचारे की तरह खड़े रहकर देखते ही रहते हैं.
नए-नए राजनीति में कदम रखने वाले केजरीवाल को क्या पता कि जिस गुब्बारे रूपी लहर को रोकने की वह कोशिश कर रहे हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि वहां हर कदम पर खतरे ही खतरे हैं. माना कि वह खतरों के खिलाड़ी हैं फिर भी इस तरह स्टंट करने से पहले उन्हें सेफ्टी प्रिकॉशन ले लेना चाहिए. उनकी मजबूरी यह है कि वह अपना गुस्सा भी नहीं दिखा सकते लेकिन उन्हें खुशी तब होती है जब यही काम उनके रणबांकुरे कर देते हैं.
यह तो बात हुई केजरीवाल साहब की लेकिन कांग्रेस की नगमा का क्या कसूर कि लोग (कांग्रेस कार्यकर्ता भी) उन्हें छूकर उनके बदन में लहर पैदा कर रहे हैं. अरे माना कि वह अभिनेत्री हैं और कांग्रेस ने उनकी खूबसूरती को देखकर किसी क्षेत्र का प्रतिनिधि बनाया है. इसका मतलब तो यह नहीं कि वह उस क्षेत्र की संपत्ति हो गईं. शायद इसमें भी दोष हमारे देश के उन नेताओं का है जो किसी क्षेत्र का प्रतिनिधि बन जाने के बाद उस क्षेत्र की ओर रुख नहीं करते. यही सोचकर लोग नगमा को शिकार बना रहे हैं. उन्हें लगता है कि यह पहला और अंतिम मौका है इसके बाद तो शायद ही यह अभिनेत्री (नगमा) इस क्षेत्र की ओर रुख करेगी, इसलिए अभी जितना छेड़ना है छेड़ लो, बाद में मौका नहीं मिलेगा.
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और हमारे राजबब्बर साहब की बात ही निराली है. बेचारे जहां भी चुनावी सभा करने जाते हैं, उन्हें बीच-बीच में ‘हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की’ के जवाब में अबकी बार मोदी सरकार का नारा सुनने को मिलता है. क्या हो गया है पब्लिक को, भाषण सुनने की भी तमीज नहीं! भई, चुनावी सभा किसी की और आप हैं कि नारा लगाते हैं विपक्षी दल का. लेकिन पब्लिक है भई, नाराज भी करना ठीक नहीं इसलिए बब्बर साहब को मुस्कुरा कर चुप रहना ही बेहतर लगता है.
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