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‘सब कुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी…’. इसे इनके लिए उल्टा गाना चाहिए..इस तरह… ‘न कुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी…’.
बड़ा शोर था उनकी होशियारी का. हर तरह वही चर्चा में छाए थे. चौधरी बने इस छोटे से राजकुमार की चौधराहट की चमक की इतनी चर्चा थी कि सब कहने लगे थे चाचा चौधरी की तरह यह छोटा नाम करेगा. हां भाई, नाम तो कमा ही रहा है. फर्क इतना है कि चाचा चौधरी के पास साबू था तो उसने झट से हर मुश्किल हल करके नाम कमाया लेकिन इस छोटे चौधरी के पास साबू नहीं है तो खाली ढोल पीटकर, सारे काम बिगाड़कर नाम कमा रहा है.
इस चौधरी की क्या बात करें.. जहां जाता है बस छा जाता है. विदेश से पढ़कर छोटा चौधरी आया और सबका लाडला बन गया (अब कोई यह थोड़े न जानता है कि विदेश में कितनी बार फेल होकर पास किया…और पास हुए तो कितनी मुश्किल से पास हुए. अब यह भी कोई पूछने-बताने की बात है भला क्या! आपने दसवीं पास कर ली..बस!..अब कितनी चिट-पासिंग के कारनामे इसके लिए अंजाम दिए यह न कोई पूछने जाता है, न आप बताने जाते हैं. वैसे भी यह तो ‘एक्स्ट्रा-कॅरिकुलर एक्टिविटी’ है, हर किसी के बस की बात यह नहीं है. भले ही ऐसे बच्चों को बेवकूफ कहें लेकिन चीटिंग करने में कितनी मेहनत लगती है जरा एक बार आजमा कर देख लें. पसीने न छूट जाएं तो इस गली को भूल जाना..) खैर छोड़िए हम तो इन छोटे चौधरी की चौधराहट की बात कर रहे थे.
सबसे पहले आप जानना चाहेंगे कि आज छोटे चौधरी की चौधराहाट का किस्सा यहां किस तरह निकल पड़ा. बताएंगे..बताएंगे..हुजूर…आप ही तो हमारे पेट के हमदर्द हैं.. आप से पेट की बात करने आए हैं…न बताएं तो हमारे तो पेट में ही दर्द हो जाए! हां, तो हुआ यूं कि ये छोटे चौधरी विदेश से आए और अपनी प्यारी सी अम्मा जी से कहा, “मम्मी..मम्मी…मुझे चौधरी बनना है!” मम्मी ने कहा कि बेटा तू तो पहले ही राजकुमार है, तुझे चौधरी बनने की क्या जरूरत. इतनी छोटी उमर में क्यों ये बुड्ढों वाला नाम लेना चाहता है… तो ये राजकुमार उर्फ आज के छोटे चौधरी ने कहा, “मम्मी..मम्मी बात ये है कि मैं सबसे कहता हूं कि मैं राजकुमार हूं तो हंसते हैं मुझ पर कि मैं तो बना-बनाया राजकुमार हूं. मुझे अपना कोई नाम चाहिए..तो मुझे चौधरी बनना है”. मम्मी अपने राजकुमार की जोश भरी आवाज से खुश हो गईं और कहा, “जा बेटा..चौधरी बनने के लिए तुझे जो करना है, तू कर..यह मां नहीं, इस आर्यावर्त की राजमाता कह रही है.” और इस तरह खुश होता हुआ यह राजकुमार चौधरी बनने को आजाद हो गया. पर कहानी यहां खत्म नहीं शुरू हुई दोस्तों…राजकुमार ने चौधरियों वाले कपड़े खरीदे..सफेद कुरता पायजामा और एक बंडी! बस चौधरियों वाला भेष धरा और निकल पड़े शान से कि चौधरी का रूप ले लिया है, अब तो हर कोई मान देगा. तो निकले बीच बाजार और लगे लोगों को भाषण देने. लोगों ने राजकुमार को देखा तो वहीं खड़े हो गए कि सुनें ऐसा क्या कह रहे हैं विदेश से लौटे राजकुमार. लेकिन बातें सुनी तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ा. उन्हें पता तो था नहीं कि राजकुमार चौधरी बनना चाहते हैं इसलिए ऐसी बहकी-बहकी बातें कह रहे हैं..तो उन्होंने सुन लिया कि राजकुमार का मान रखा जाए. लेकिन एक बार, दो बार, तीसरी बार हर जगह राजकुमार इसी तरह पहुंचते और शोर मचाने लगते. लोगों से कहते कि वे ही सबके मसीहा हैं..जब मन होता खेतों में निकल पड़ते. किसानों के साथ जाकर अनशन पर बैठ जाते. रेलगाड़ी, पैदल यात्रा हर जगह ये राजकुमार नई-नई चौधराहट का शौक पूरा करने पहुंच जाते. आखिरकार लोगों ने जब जाना कि बात क्या है तो वे समझ गए कि दरअसल यह राजकुमार बुद्धि से थोड़ा कमजोर है. विदेश से आया था. देशी चीजों का कहां ज्ञान होगा. वहां तो ‘हाय डूड’ बोलकर कोई बेवकूफ भी स्मार्ट बनने की कोशिश करता है लेकिन आर्यावर्त में तो चौधरी बनने के लिए सबसे पहले ‘छड़ी’ होनी चाहिए…छड़ी! ‘छड़ी’ माने बुद्धि!
अब बेचारे इस राजकुमार के पास बुद्धि है ही नहीं तो ये लाए कहां से! कोई बात नहीं आर्यावर्त में दशमलव और शून्य का आविष्कार हुआ है…यहां घर-घर में बुद्धि है. इसलिए लोगों ने सोचा चलो इस छोटे बुद्धिहीन राजकुमार को राजमाता के नाम का थोड़ा सुख लेने दो. इसलिए आर्यावर्त वासी इस चौधरी की बातें सुनते रहे और मंद-मद मुस्कुराते रहे. राजकुमार को बुद्धि तो थी नहीं इसलिए उसे लगा कि लोग उसकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा में मुस्कुरा रहे हैं. अब हम क्या कहें इसे..हमारी गली में तो सबका स्वागत है. हम तो सबका सम्मान करते हैं. हां कभी-कभी जब वाणी व्यंग्यात्मक हो जाया करती है तो आपके साथ बांट लिया करते हैं. इनकी इस मूर्ख बुद्धि पर भी हम क्या कहें…बस इतना ही कह सकते हैं.. “हाय रे ये तेरी चौधराहट की बीमारी..तेरी बुद्धि की बलिहारी!”
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