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कंप्यूटर तो है पर घर में खाने को कुछ नहीं, लैपटॉप देकर बच्चों को हाइटेक तो बनाना है पर उन्हें कागज की कापी देकर परीक्षा में बैठाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं है. ऐसा ही कुछ हाल है अखिलेश बाबू की सरकार का जहां कुछ दिन पहले 10 हजार बच्चों को लैपटॉप बांटे गए थे लेकिन उन बेवकूफ बच्चों, जिन्हें इतने महंगे लैपटॉप का मोल समझ नहीं आया, ने बहुत कोशिश की कि उसे बेच दिया जाए ताकि घर में कुछ पैसे आएं. वह तो कुछ पैसों में भी अपना लैपटॉप बेचने के लिए तैयार थे क्योंकि उन नासमझ बच्चों को लगा कि लैपटॉप से ज्यादा जरूरी उनके लिए वो पैसे हैं जिससे उनका और उनके परिवार का पेट भर सके. अब बेचारे बच्चे पैसे की मोह माया में इतना उलझ गए थे कि उन्हें लैपटॉप जैसी मूल्यवान वस्तु की कद्र समझ नहीं आई.
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को मुफ्त में लैपटॉप बांटने का वायदा तो अखिलेश ने निभा दिया लेकिन लगता है इस काम में उनके सारे पैसे खत्म हो गए जिसकी वजह से अब बेचारे बच्चों को परीक्षा देने के लिए कॉपियों का इंतजाम ही नहीं किया जा पा रहा है.
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में होने वाली परीक्षाओं में आठवीं क्लास तक के बच्चों से कहा गया है कि वह अपनी परीक्षा के लिए उत्तर पुस्तिका घर से ही लाएं. इतना ही नहीं अध्यापकों को यह भी आदेश दिया गया है कि वह प्रश्नों को ब्लैकबोर्ड पर ही लिख दिया करें, क्योंकि उनके पास प्रश्नपत्र छपवाने के लिए भी पैसे नहीं हैं. अरे कहां से लाएंगे बेचारे अखिलेश बाबू पैसे, इतने सारे तो लैपटॉप बांट दिए अब कहां से आएंगे पैसे?
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हो गया जो उत्तरप्रदेश का खजाना कंगाल हो गया, तो हम आपको बता दें कि यह हालात इसलिए पैदा हुए हैं क्योंकि आगामी 7 मई से प्रारंभ होने वाली परीक्षाओं के लिए राज्य सरकार की ओर से कोई बजट मुहैया नहीं करवाया गया है. इस बार स्कूलों को 35 करोड़ की जरूरत है और 25 रुपए प्रति बच्चे के हिसाब से खर्च आना है लेकिन उत्तरप्रदेश सरकार का बैंक अकाउंट लैपटॉप के चक्कर में खाली हो गया है.
आपको याद होगा कि जब आप भी स्कूल में पढ़ते थे तो परीक्षा के दिनों में शायद आप सुबह यही सोचकर जाते थे कि काश किसी तरह परीक्षा कैंसल हो जाए, पेपर चोरी हो जाए या स्कूल में पानी भर जाए, आदि. आप तो बस ऐसा सोचते ही रह जाते थे लेकिन अब उत्तरप्रदेश की हालात तो वाकई हास्यास्पद हो चुकी है क्योंकि जहां पहले बच्चे परीक्षा से भागते थे वहीं अब स्कूल ही परीक्षा ना लेने के लिए बहाने ढूंढ़ने लगे हैं.
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