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गांव देहातों में भूत-प्रेत और अंधविश्वास जैसे किस्से प्राय: सुनाई दे ही जाते हैं. शहरी जनता और विज्ञान का दामन थाम कर चलने वाले लोग भले ही ऐसे अंधविश्वासों को सुनकर अपनी हंसी ना रोक पाएं लेकिन हैरानी की बात तो यही है कि हमारे राजनेता इन सब चीजों पर बहुत ज्यादा विश्वास करते हैं. वे ना सिर्फ रात के समय भूत और आत्माओं से दो चार होते हैं बल्कि ऐसे स्थान जहां उन्हें पता भी चल जाए कि किसी बुरी शक्ति का वास है, वह वहां जाने से ही साफ इंकार कर देते हैं.
बाकियों के बारे में तो कह नहीं सकते लेकिन हमारे अखिलेश बाबू थोड़े ज्यादा डरे-डरे हैं. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के बावजूद उन्हें नोएडा जाने से डर लगता है. उन्हें लगता है कि अगर वह नोएडा गए तो वहां का भूत उनकी कुर्सी ना हथिया ले. ऐसा कहा जाता है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अगर कोई नोएडा जाता है तो उसकी कुर्सी छिन जाती है.
हाल ही में अखिलेश यादव को नोएडा से जुड़ी 3300 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का शिलान्यास करने के लिए बुलाया गया था. अरे भई मुख्यमंत्री हैं जाना तो फर्ज था लेकिन नोएडा से खौफ खाए अखिलेश बाबू ने लखनऊ में ही बैठे-बैठे अपने सरकारी आवास से शिलान्यास की औपचारिकता को पूरा कर दिया. इससे पहले राजनाथ सिंह ने भी 2001 में एक फ्लाइओवर का उद्घाटन दिल्ली में ही बैठे-बैठे किया था.
इस अंधविश्वास की शुरुआत हुई वीर बहादुर सिंह के काल से. जब उन्होंने नोएडा जाने का निर्णय किया तो वह अपनी कुर्सी से ही हाथ धो बैठे. 1999 में कल्याण सिंह भी नोएडा गए लेकिन जल्द ही उनकी भी कुर्सी चली गई. इसके बाद नंबर आया राम प्रकाश गुप्ता और बहन कुमारी मायावती का, दोनों ने नोएडा जाते ही अपनी कुर्सी खो दी. लेकिन जब चौथी बार सीएम बनने के बाद मायावती ने इस अंधविश्वास की कमान संभाली और वे नोएडा गईं तब 2012 के चुनावों में वह सत्ता हासिल नहीं कर पाईं. अब ताजा-ताजा मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव अपने कुर्सी के साथ समझौता नहीं करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने पहले ही अपने कान पकड़ लिए.
यह बातें सुनकर आपको भी डर लग गया होगा.
अरे-अरे आप नोएडा जाने से मत डरिए क्योंकि वहां का भूत या आत्मा सिर्फ उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री को ही परेशान करता है. इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं शायद जिस भूत के वहां होने की बात कही जाती है वह उस व्यक्ति का भूत होगा जो कभी खुद उत्तर प्रदेश के सिंहासन पर बैठना चाहता होगा और उसकी यह इच्छा अधूरी रह गई या फिर वो किसी सामाजिक कार्यकर्ता का भूत है जो उत्तर प्रदेश की हालत से बहुत ज्यादा खफा है और वहां सत्ता ग्रहण करने वाले हर राजनेता की कुर्सी खींच लेता है.
खैर कारण जो भी हो अखिलेश यादव जहां बिना डरे जा सकते हैं वहां की हालत तो अब तक सुधरी नहीं. अगर शीलान्यास के मौके पर वह नोएडा नहीं गए तो इसमें अफसोस तो करना ही नहीं चाहिए.
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