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हाथी और साइकिल के सहारे कब तक चलेगी सरकार

कटाक्ष
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दोस्त दोस्त ना रहा…….यह गाना आजकल यूपीए सरकार गुनगुनाती नजर आ रही है. क्योंकि पहले दीदी यानि ममता बनर्जी उनका दामन छोड़कर चली गईं और अब नाराज करुणानिधि ने भी अपना हाथ झटक लिया. अब अगर संप्रग का कोई अपना बचा है तो वह है हाथी और साइकिल, जिनके सहारे कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अपना तख्त सहेज कर बैठी है.


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चलिए कोई बात नहीं दीदी गईं तो गईं बहनजी तो हैं. बसपा अध्यक्ष मायवती अपने वायदे पर कायम हैं और वह आज भी यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रही हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक….!!


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आपको लग रहा होगा कि तृणमूल कांग्रेस और डीएमके के हाथ वापस खींचने के बाद सरकार का क्या होगा? अल्पमत में आ चुकी सरकार को कभी भी बहुमत साबित करने के लिए बुलाया जा सकता है.. ऐसे में वह कैसे खुद को बहुमत वाली सरकार के रूप में स्थापित कर पाएगी?


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तो हम आपकी इन सारी जिज्ञासाओं को शांत कर देते हैं. शायद आपको यह बात पसंद ना आए लेकिन भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त जनता को यूपीए सरकार को निश्चित तौर पर कुछ समय तक और झेलना पड़ सकता है क्योंकि जब तक यूपीए सरकार को सपा और बसपा का बाहर से समर्थन प्राप्त है उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.


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बाहर के साथी कांग्रेस के साथ कोई धोखाधड़ी नहीं करने वाले. मायावती तो पहले ही कह चुकी हैं कि उनका कांग्रेस को समर्थन जारी रहेगा. रहना भी चाहिए क्योंकि अब लगाम उनके खुद के हाथ जो आ गई है. जैसे चाहे वैसे कांग्रेस को नचाया जा सकता है, अपनी कोई भी बात मनवाई जा सकती है. अरे भई समर्थन दे रहे हैं, कोई मजाक नहीं है. समर्थन ना दिया तो बेचारी सरकार औंधे मुंह गिर जाएगी और कोई पूछने वाला भी नहीं होगा. अब एक हाथ ले और एक हाथ दे तो करना ही पड़ेगा. दोनों का अपना-अपना फायदा और अपनी-अपनी मजबूरियां हैं.


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हालातों को देखते हुए तो लगता है कि भले ही सरकार खुद को बहुमत में साबित कर दे लेकिन अंदरूनी तौर पर तो कांग्रेस की दिक्कतें शुरू हो गई हैं. बड़ी ही आसानी से अब कांग्रेस से अपनी बातें मनवाई जा सकती हैं. उसे ब्लैकमेल किया जा सकता है. अरे भई गोल्डन चांस हाथ लगा है कौन जाने देगा. बस एक समर्थन की ही तो बात है, बाकी तो सब कुछ अपने ही हाथ में है ऐसे में कौन बुडबक यूपीए को समर्थन नहीं देगा. संप्रग भी जानती है कि अगर साइकिल और हाथी की सवारी करनी है तो उनकी हर बात माननी ही पड़ेगी, नहीं तो उनके कट्टर दुश्मन यानि एनडीए उनकी सरकार गिराने के लिए जो पूजा-पाठ कर रही है उसे उसका फल मिल जाएगा.


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अब जब कांग्रेस की किस्मत घड़ी के पेंडुलम की तरह इधर-उधर होने लगी है तो जाहिर है एनडीए की उम्मीद की किरण एक बार फिर जाग चुकी है. वह तो बस इसी फिराक में होगी कि कब बाहर से समर्थन देने वाले यूपीए के साथी उसका दामन छोड़ें और एनडीए की बरसों की मनोकामना पूरी हो.


क्या इन्हें मिलेगी सजा !!

चुपचाप समाज सेवा करो

अब तो चुप हो जाइए बाबा जी अब कितना ज्ञान दीजिएगा


Tags: political scenario, DMK withdrew form UPA, government, government सरकार, यूपीए, डीएमके, राजनीतिक समीकरण, भारत की राजनीति



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