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सांसदों को हिरोइन और क्रिकेटर की तो कद्र ही नहीं है

कटाक्ष
कटाक्ष
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मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और बला की खूबसूरत बॉलिवुड अदाकारा रेखा अब सिर्फ खेल और कला से ही जुड़ी हुई हस्तियां नहीं हैं बल्कि अब तो राज्यसभा में भी इनका ग्लैमर बराबर देखा जा सकता है. लेकिन हमारे राज्यसभा सदस्य क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड्स से चिढ़ते हैं या फिर रेखा की खूबसूरती से यह तो पता नहीं लेकिन कुछ तो है उनके अंदर जिसे देखकर हमारे नेतागण खुद को नियंत्रण में नहीं रख पाते हैं.


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अब देखिए ना राज्यसभा सदस्य सचिन तेंदुलकर और रेखा ने जब अपनी छुट्टी के लिए आवेदन किया था तो पूरा सदन हंसी ठिठोली की आवाजों से गूंजने लगा. एक तो पहले ही यह दोनों सेलेब्स राज्यसभा में अपनी मौजूदगी बहुत ही कम दर्शाते हैं और ऊपर से अब छुट्टी.


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उल्लेखनीय है कि सचिन ने गत 21 फरवरी से शुरू हुई क्रिकेट सीरीज के लिए राज्यसभा से छुट्टी मांगी थी. उनका कहना था कि वह मैच में व्यस्त होंगे इसीलिए सदन की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकते. जैसे ही उपसभापति पी.जे. कुरियन ने सचिन की छुट्टी मांगने जैसी बात सदन के अन्य सदस्यों के सामने रखी वैसे ही सदन के बाकी सदस्य इतनी जोर से हंसे की पूछिए मत. उनका तो यह साफ कहना था कि सचिन को हर बार छुट्टी चाहिए होती है क्यों ना उन्हें परमानेंट छुट्टी दे दी जाए.


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हमारे नेता कहां समझते हैं इन बड़े और नामी-गिरामी सेलेब्स की चमक. वह तो बस उनकी लोकप्रियता से ईर्ष्या रखना जानते हैं. अब सचिन नेतागिरी करते हुए और रेखा अपनी नाजुक आवाज में सदन की चिल्लम-चिल्ली में भाषण देती हुई अच्छी लगेंगी क्या?


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राज्यसभा सदस्य बना दिए गए तो क्या हुआ, यह कहां कहा था कि काम भी करेंगे. तमगा है, मिल गया. अब क्या इस पार्ट टाइम काम के लिए उनका फुलटाइम कॅरियर छीन लोगे? उन्हें कोई ये तो बताए कि फुलटाइम राज्यसभा सदस्य होने के बावजूद हमारे नेतागण कौन से झण्डे गाड़ लेते हैं जो इन सितारों की कमी उन्हें वहां खल रही है.



सदन चले न चले क्रिकेट और फिल्में तो चल रही हैं, यही बहुत है. वैसे भी भारत की राजनीति है चलती कम, घिसटती ज्यादा है. इसीलिए किसे फिक्र है सदन के चलने या ना चलने की.


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हीरो-हिरोइन और क्रिकेटर अपने बारे में सोचें या फिर सदन के फिजूल के सत्रों की. लेकिन हमारे नेता तो उनकी अहमियत समझते ही नहीं हैं. अरे भई वो सचिन तेंदुलकर हैं, कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं हैं. उनका तो बस नाम ही काफी है. उनसे सदन का काम करवाने की सोचनी भी नहीं चाहिए.


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