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वार्ता का दौर चालू है कृप्या सब्र करें. अब आर-पार की लड़ाई होगी कृप्या सब्र रखें. कुछ ना कुछ तो होगा कृप्या सब्र रखें. ऐसी जल्दबाजी अच्छी नहीं कृप्या सब्र रखें. लेकिन कोई यह नहीं बताता कि कितना और कब तक सब्र रखना है?आप तो खुद ही भुग्तभोगी हैं, अवस्था से अंजान भी नहीं हैं, आखिर कब तक सब्र रखें? किसी ने खूब कहा है “बहुत दूर है मन्दिर, चलो यूं कर ले, किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाए.”शायद इस मुस्कान की जरूरत अब पूरे हिन्दुस्तान को है, जो किसी ना किसी रूप में अपने बच्चों को गोली का शिकार होते देखता रहता है. अपनी आंखों के सामने इन बर्बादियों का मंजर किसको अच्छा लगता होगा? अपने ओज का त्याग कर चुकि भारतीय राजनीति से क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि वो आने वाले समय में देशवासियों की रक्षा आतंकवाद से कर सके?
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एक बार फिर समय आया है: एक बार वह समय फिर से दस्तक देने को खड़ा है जब भारत पर लगे घावों का हिसाब किया जा सके. पकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक तीन दिन की वार्ता पर कल भारत आए हैं. क्या हम इस बार यह उम्मीद कर सकते हैं कि उनके साथ न्याय होगा जिनसे दहशत और हैवानियत की वजह से जीने का हक छीन लिया गया. जिनके परिवारवाले आज भी क्रंदन के आलप ले रहे हैं. इस प्रकार की संवेदनहीनता को कैसे और कब तक बर्दाश्त करना होगा इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है और ना ही कोई कभी इस सियासत से यह उम्मीद कर सकता है.वार्ताओं का दौर नाजाने कब से चलता जा रहा है और ना जाने तब तक इसका क्रम ऐसे ही जारी रहेगा. परिवर्तन के नाम पर आश्वासन की झिड़की कब तक और सुनने को मिलेगी? ऐसे सवाल पूछना शायद एक रीति बन चुकी है और बड़े पैमाने पर कोई खास प्रभाव यह नहीं पैदा कर पाते हैं.
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अब तो कुछ कर दो: अब तो कुछ करना ही चाहिए, मात्र कसाब को फांसी देकर चुनाव के समय अपनी स्थिति को गरमाने से क्या मिलेगा? एक बार उनके चेहरे को भी देख लेना आवश्यक है जिनके परिजनों के मरने का हरजाना मात्र देकर मुंह पर ताला ठोक दिया गया है. क्या एक मानवीय जान की तुलना मात्र हरजाने से की जा सकती है? जरूरत के आधार पर कार्य अगर किया जाए तो आप सब की नजर में बस सकते हैं. जहां बात होनी चाहिए आतंकवाद के बारे वहीं वीजा के नए नियम के ऊपर चर्चा होने की बात कही जा रही है. अब यह कहां तक मान्य है, यह देखने वाली बात होगी. जिस प्रकार अधिकारों का हनन किया जाता रहा है और इस मौके पर भी उसी प्रकार की पंरपरा का निर्वाह किया जाता दिख रहा है. कहा जा रहा है कि यह वार्ता मुख्य रूप से वीजा के नए नियमों पर चर्चा के लिए रखी गई है जहां कसाब की फांसी और अफजल गुरु के ऊपर भी एक साधारण सी चर्चा होने की उम्मीद है.
इनसे ऐसी ही उम्मीद है: इनसे और क्या उम्मीद की जा सकती है जिसने यहां तक कह दिया है कि हमे आईएसाई पर गर्व है. वो कैसे और किस रूप में आतंकवाद के खात्मे की बात करेंगे. रहमान मलिक से तो यह भी उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वो एक पुरजोर रूप से इस तरह के वक्तव्यों का विरोध करेंगे. एक मुद्दा और भी हो सकता है जिस के ऊपर चर्चा हो सकती है वह है नकली नोटो का. इसे रोकने के लिए दोनों देश साथ में प्रयास करेंगे कि जल्द से जल्द इस कारण का निवारण किया जा सके. अब बस हर बार की तरह इस बार भी यही देखना है कि सब्र का फल कैसा मिलता है!!
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