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यहां सब अपनी धुन में लगे हुए हैं. यहां के लोगों को लाश पर चलने की आदत हो गई है. किसी को ना तो क्षोभ होता है और न ही घृणा आती है. सब यहां अपनी आदत को ना बदलने की कसम खा बैठे हैं. ताज़ातरीन सर्वेक्षण के आधार पर यह बात सामने आई है कि भ्रष्टाचार के मामले में भी भारत तालिका के अंत में ही अपनी जगह बना पाया है. भारत सब तरफ से ही पिछ्ड़ा है. कोई भी ऐसा विभाग नहीं है जहां भारत का नाम आगे आता हो. इसका कारण क्या है? सबसे बड़ा प्रश्न यही है पर इसका कोई आधार या फिर कोई ऐसी संस्था नहीं है जो पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी ले और जवाबदेही के लिए तैयार रहे. विकास के दौर में अगर बात करें तो वहां भी अभी काफी कार्य की आवश्यकता है जो विश्व स्तर पर भारत को एक अच्छे दावेदार के रूप में सामने लाए. भारत आगे बढ़ने में सक्रिय तो है पर कोई ना कोई ऐसा कारक है जो विकास के क्षेत्र में प्रगति को लेकर अवरोध उत्पन्न कर रहा है.
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इसका कोई इलाज नहीं है: क्या सच में भारत से कभी भी भ्रष्टाचार का सफाया नहीं होगा? क्या इस देश की हालत इसी तरह की बनी रहेगी? जहां विश्व में इससे छोटे-छोटे देश जो भारत की तरह संपन्न नहीं हैं वो भी भारत से इस दौड़ में आगे चल रहे हैं. शायद संपन्नता इस बात पर निर्भर करती है कि वो देश कितना प्रजातांत्रिक है और कितना भ्रष्टाचार मुक्त और आज के भारत में यही दोनों चीजें खोती जा रही हैं. इस तालिका में भारत 95वें स्थान पर है जहां श्रीलंका और भूटान जैसे देश भारत से काफी आगे हैं भ्रष्टाचार मुक्ति की ओर. भारत जहां एक ओर कई सारे अनुसंधान कर रहा है वहीं दूसरी तरफ इतनी खराब रिपोर्ट.
यहां अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है!
आंदोलनों का क्या: देश में हो रहे आंदोलन पूरी तरह से बेकार घोषित कर दिए गए हैं. जितने भी प्रतिवाद किए गए उनको प्रतिशोध का नाम दिया गया. अन्ना हज़ारे से लेकर अरविन्द केजरीवाल तक के आंदोलन को मात्र सत्ता प्राप्ति का ढोंग बताया गया. सिर्फ एक पक्ष को दोषी बनाना अच्छा नहीं है. यहां की जनता भी उतनी ही कमजोर है जितने कि यहां के राजनेता ताकतवर. हम उन्हें सारे अधिकार सौंप चुके हैं और अब हमारे पास सहने और प्रतिवाद करने के अलावा और कुछ भी नहीं है. जिस प्रकार से हम रोज़-रोज़ सियासत की नयी छवि से रूबरू हो रहे हैं यह कहीं न कहीं हमें यह जरूर बता रहा है कि हमारी कोई बिसात नहीं है. वो जो चाहे कर सकते हैं हम बस अवलोकन ही कर सकते हैं. पर यह भी बात सही है कि अगर जनता ये सब देखेगी तो क्यों हम सरकार बनाते हैं और अगर सरकार द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारी ऐसा करेंगे तो किस प्रकार जनता मौन रहेगी.
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