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संसद क्या हल्ला मचाने की जगह है?

कटाक्ष
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Parliamentभारतीय राजनीति एक अलग किस्म की है, जो पूरे विश्व की राजनीति से भारत को अलग करती है. जहां कुछ देशों में लोकतंत्र है और कुछ देशों में राजतंत्र, पर भारत ही मात्र एक ऐसा देश है जहां लोकतंत्र में भी राजतंत्र का अक्स दिखाई देता है. परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति पर आधारित भारत इसलिए ‘’आज’’ महान है कि इन सब के बावजूद भी वो अपना अखंड रूप कायम रखने में कारगर है. जहां बात आती है सत्ता की तो एक पक्ष या परिवार ऐसा है जो भारतीय राजनीति को हमेशा ही प्रभावित करता रहा है.


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राजनीति की विशेषता: राजनीति खुद में ही विशेष है और कई ऐसे कारक हैं जो इसकी विशेषता और उपयोगिता दोनों को बढ़ा देते हैं. इन कारकों में कुछ मुख्य हैं जैसे परिवार, वंश, जाति के आधार पर आए लोग जो बीच-बीच में राजनीति की आग को हवा देते रहते हैं. राजनीति की बयार जब संसद को छू कर निकलती है तब सही मायने में यह बात साफ हो जाती है कि भारत की जनता किस लोकतंत्र में गुजारा कर रही है. हर एक राजनैतिक मोड़ पर एक खास परिवार जिसे इस देश का सबसे पुराना राजनैतिक परिवार कहना ज्यादा ठीक होगा किसी ना किसी रूप में राजनीति के दांव में उलझता रहता है और सदैव सत्ता में बने रहने की अकुलाहट रहती है उसके भीतर.


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संसद में हल्ला बोल: संसद ही एक ऐसी जगह है भारत में जहां कोई किसी की बात सुनने नहीं जाता है सब अपनी बात दूसरों पर थोपते नज़र आते हैं. जनता के मुद्दे पर चर्चा का ढोंग करने वाले नेता संसद में आपस में ही उलझते ज्यादा नज़र आते हैं. सब विभागों में बदलाव हो रहा है तो राजनीति में क्यों नहीं होगा. यहां एक अच्छा विकल्प खोजा गया है जिसके अंतर्गत चर्चा में शोर मचाओं, सदन खुद-ब-खुद स्थगित कर दिया जाएगा. स्थगित सदन ठीक उसी प्रकार होता है जैसे शरीर में से प्राण निकल जाने के बाद पार्थिव शरीर.


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नए प्रसाधन: प्रयोग तो राजनीति की प्रमुख बात रही है पर आजकल बहुत सारे ऐसे प्रयोग किए जा रहे हैं जिसकी किसी ने भी आशा नहीं की थी. गुजरात में होने वाले चुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ऐसे उपकरण का चलन शुरू किया जिसका मुख्य काम जनता तक अपनी आवाज को सरलता से पहुंचाना था. वो एक जगह सभा को संबोधित करेंगे और उसका प्रसारण और कई जगह किया जाएगा. जितना पैसा और दिमाग नेता इन सब प्रसाधनों पर खर्च कर रहे हैं उतना अगर देश के हित में किया जात तो शायद कुछ तो सुधार होता. अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए सब कुछ करना और जनता को भी उसमें लपेटना आज राजनीति का परम उद्देश्य बन गया है.


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