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सफेदी ओढ़े नेता जी की राजनीति

कटाक्ष
कटाक्ष
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राजनीति में गर्मी आम और पुरानी बात है. ऐसा होता आया है और ऐसा ही होता रहेगा. जब तक भारतीय राजनीति के जो मुख्य ‘’विकृत’’ विचार नहीं हटाए जाएंगे तब तक यहां का माहौल ऐसा ही रहेगा. हर एक मुद्दे पर राजनीति करनी क्या आवश्यक है? विरोध और प्रभुता के लिए सत्ता प्राप्त करना उतना ही गलत काम है जितना कि एक लोकतंत्र में किसी काम के लिए रिश्वत देना. भारत में राजनीति एक छोटे पद से शुरू होकर बडे ओहदे तक पहुंचने का अच्छा जरिया है. जहां एक छोटे से नुक्कड़ से शुरू होकर राजनीति संसद तक जाती है वहां यह पूरी तरह से लाजमी है कि इस पूरे सफर के दौरान कुछ गलत जरूर हुआ होगा.


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राजनीति के प्रकार(Types of Politics): पूरे विश्व में सबसे ज्यादा राजनीति के प्रकार भारत में ही मिलते हैं. जैसे कि भारत को धर्म, भाषा और जातियों के लिए धनी माना जाता है अब राजनीति को भी इस सूची में शामिल कर लिया गया है. कहीं जाति की राजनीति मुखर है तो कहीं पैसे, कहीं पद और जो सबसे बड़ी शाखा वो है सिफारिश की राजनीति. इस राजनीति के कई फायदे हैं. मुख्य तौर से यह ‘’लोगों’’ मतलब कि कम नंबर लाने वाले विद्यार्थियों को अच्छे कालेज में दाखिला दिलाना, टेंडर पास कराना इत्यादि में काफी लाभदायक है. जाति के नाम पर छोटे से छोटे स्तर पर वोट इकट्ठा करना. एक किसी भी खास वर्ग जो अधिक रूप में उस अंचल में हो उसके हित में काम करना भी राजनीति का एक प्रकार है.


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विकास के नाम पर(Development in India): अगर इनसे सवाल किया जाए या पूछा जाए( इनसे सवाल करना ठीक नहीं) कि आपने इतने दिनों में क्या विकास किया तो शायद इनको परेशानी हो जवाब देने में पर अगर खुद देखा जाए तो विकास हुआ है. इसे पूरी तरह नकार देना सही नहीं कि विकास नहीं हुआ है. आप इनके घर जाइए वहां की सजावट देखिए, इनके बच्चों को देखिए, उनके रहने का स्तर कहां से कहां पहुंच गया है यह शायद आप नहीं आंक पाएंगे. यह सब बाहरी तौर पर देखा जा सकता सकता है इसके अलावा भी कई ऐसे साधन हैं जिनमें इन्होंने विकास किया है. हां एक यह है कि यह चौक और चौराहों पर शहीदों की मूर्तियां जरूर लगवाते हैं शायद उनके आशीर्वाद से ही कुछ हो जाए ये तो कुछ करने से रहे.


सफेदी ओढ़े नेता जी: नेता जी की मुख्य पहचान आज उनके पहनावे से होती है नहीं तो कोई भी आम आदमी यह समझ नहीं पाएगा कि यही हैं नेता जी. काम तो कोई खास होता नहीं है और चार-पांच भाषण दिए बिना कैसे गुजारा चल सकता है. इतना तो करना ही होगा ‘’जन प्रतिनिधि’’ जो ठहरे.


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