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भारतीय जनता तथा भारत के सत्ता पक्ष के नेता काफी खुश नज़र आ रहे हैं. शायद नेताओं की खुशी की ही बात है इतना बड़ा तीर जो मार लिए हैं. भले ही यह एक छोटी सी उपलब्धि हो पर काफी बड़े पैमाने पर इसकी बड़ाई की जा रही है. एक बात यह भी है कि जनता को थोड़ी तो राहत अवश्य पहुंची है पर सरकार का यह मानना बिल्कुल गलत है कि उसने पूर्ण रूप से भरोसा जीत लिया है. कसाब को फांसी देकर यह बात बड़े अभिमान से कही जा रही है कि भारत इतना कमजोर नहीं है जितना कि अन्य देश और आतंकवाद फैलाने वाले लोग समझते हैं.
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कसाब की मौत हुई है !!: भले ही औपचारिक तौर पर यह घोषणा हुई कि कसाब को फांसी दी गई पर अगर दूसरे दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक तथ्य यह भी सामने आता है कि आखिर इतनी देर से फांसी का क्या लाभ? हमारा संविधान इतना लाचार क्यों है? यह बात ठीक है कि मानवीय मूल्यों की रक्षा और उसका सम्मान भी जरूरी है पर जहां एक पक्ष का गुनाह पूरी तरह साबित हो चुका है फिर उसको सज़ा देने में इतना वक़्त क्यों लगाया गया. सज़ा भी इस रूप में दी गई कि उसे अपने मुल्क में शहीद का दर्जा प्राप्त हो गया.
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खामोशी की चादर तले: कसाब के पूरे घटनाक्रम में एक बात बहुत ही अटपटी लगी. आखिर क्यों इतने चुपचाप ढंग से उसे फांसी के तख्ते पर झुलाया गया. इसके पीछेक्या कारण हो सकता है? किस बात ने आखिर विवश किया होगा ऐसा करने को? इसका उत्तर शायद यह है कि कहीं ना कहीं भारत की सरकार भारतीय मीडिया से डरती है और शायद बाहरी आक्षेप भी एक कारण हो सकता है. भारत सरकार यह नहीं चाहती कि कसाब के मामले में बाहरी देश कोई हस्तक्षेप करें. सारे सबूत कसाब की ओर चिल्ला कर कहते हैं फिर भी इतना डर क्यों व्याप्त था सरकार में यह समझ से परे है.
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राजनीति जिंदाबाद: इस देश में कोई भी मामला हो चाहे वो देश की जनता के हित में हो या वो अहित करती हो ‘’राजनीति’’ उसमें सबसे पहले नज़र आती है. अब राजनेता इस कवायद में लगे हैं कि किस तरह इस पूरे मामले की समीक्षा कर अपने को चर्चाओं में लाया जाए. विपक्ष ने जहां इस पूरी घटना का स्वागत किया वहीं एक ओर यह भी साफ कर दिया कि यह काफी पहले हो सकता था. इस बात पर पक्ष ने उनको जवाब देते पिछ्ले सारे हमलों को गिना दिया जो विपक्ष के शासनकाल में हुआ था. भारत में कोई भी मुद्दा हो उस पर राजनैतिक रोटियां जरूर सेंकी जाती हैं.
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